सिख युवकों की न्यायेतर हत्याओं में दोषी ठहराए गए पुलिस अधिकारियों को सीबीआई अदालत द्वारा सजा सुनाए जाने से पहले रिहा करने की मांग असंवैधानिक - जत्थेदार ज्ञानी कुलदीप सिंह गरगज्ज

सिख युवकों की न्यायेतर हत्याओं में दोषी ठहराए गए पुलिस अधिकारियों को सीबीआई अदालत द्वारा सजा सुनाए जाने से पहले रिहा करने की मांग असंवैधानिक - जत्थेदार ज्ञानी कुलदीप सिंह गरगज्ज

अमृतसर, 26 अगस्त- नजराना टाइम्स बियृरो

श्री अकाल तख्त साहिब के कार्यवाहक जत्थेदार ज्ञानी कुलदीप सिंह गरगज्ज ने आज प्रकाशित एक समाचार का कड़ा संज्ञान लेते हुए कहा है कि पंजाब पुलिस कल्याण संघ द्वारा लगभग तीन दशकों के बाद सिख युवकों के फर्जी मुठभेड़ों में भूमिका के लिए सीबीआई अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए कई पुलिस अधिकारियों के पक्ष में खड़ा होना और पंजाब के राज्यपाल से उनकी रिहाई और अन्य सुविधाओं की बहाली की मांग करना अनैतिक और असंवैधानिक है। जत्थेदार गरगज्ज ने पंजाब के राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया से कहा कि सिख युवकों के पीड़ित परिवारों को सीबीआई अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए पुलिस अधिकारियों को सजा दिलाने के लिए पिछले तीन दशकों से लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ रही है, जिसके दौरान दोषियों को पदोन्नति और सुविधाएं दी गईं और अब सरकार उन्हें रिहा करने के बहाने ढूंढ रही है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार को यही करना है, तो अदालत द्वारा दी गई सज़ाओं का क्या मतलब है। इन पुलिस अधिकारियों ने 1990-94 में हज़ारों सिख युवकों का अपहरण करके फ़र्ज़ी मुठभेड़ों में उनकी हत्या की थी, जिसके लिए उन्हें सज़ा मिलनी ही थी। उन्होंने कहा कि बाबा चरण सिंह कार सेवा वाले, भाई जसवंत सिंह खालड़ा, शहीद भगत सिंह के रिश्तेदार कुलजीत सिंह ढट्ट, ​​भारत के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान देने वाले सरदार सुलखन सिंह भकना, सेना, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, पुलिस और बिजली बोर्ड के कई अधिकारियों के अपहरण और न्यायेतर हत्याओं के मामलों में इन आरोपी पुलिस अधिकारियों को लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सज़ा मिली है। उन्होंने कहा कि इन पुलिस अधिकारियों को रिहा करना पीड़ित परिवारों के साथ एक और अन्याय होगा।

जत्थेदार गर्ग ने पंजाब के राज्यपाल श्री कटारिया से अनुरोध किया कि यह मामला पंजाब में लंबे समय से चल रहे मानवाधिकार उल्लंघन से जुड़ा है, इसलिए कोई भी फैसला पंजाबियों, खासकर सिखों की भावनाओं के अनुसार लिया जाना चाहिए।

जत्थेदार ज्ञानी कुलदीप सिंह गर्गज ने कहा कि यह भी बहुत बुरा और दुर्भाग्यपूर्ण है कि मीडिया का एक वर्ग भी इस सिख विरोधी नैरेटिव को आगे बढ़ाने में भूमिका निभा रहा है, जबकि यह निष्पक्ष और न्यायसंगत होना चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस तरह मीडिया ने आरोपी पुलिस अधिकारियों की तुलना दशकों से सजा काट रहे बंदी सिंहों (सिख राजनीतिक कैदियों) से की है, ऐसा लिखना पूरी तरह से गलत और शरारतपूर्ण है। उन्होंने कहा कि बंदी सिंहों ने लंबा समय जेलों में बिताया है, जबकि न्यायेतर हत्याओं के आरोपी पुलिस अधिकारियों को सजा मिलने में तीस साल लग गए। ये पुलिस अधिकारी पिछले तीस सालों से आज़ाद थे और उन्हें सजा पिछले तीन सालों से ही मिल रही है। इन दोनों पहलुओं की एक-दूसरे से तुलना कैसे की जा सकती है और यह कैसे उचित है? उन्होंने कहा कि जिन भी बंदी सिंहों को रिहा किया गया है, वे संविधान और कानून के अनुसार हैं, जो न्यायसंगत है। उन्होंने कहा कि जिंदा शहीद भाई बलवंत सिंह राजोआना, भाई गुरदीप सिंह खेड़ा, प्रोफेसर दविंदरपाल सिंह भुल्लर, भाई जगतार सिंह हवारा, भाई जगतार सिंह तारा, भाई परमजीत सिंह भियोरा समेत कई सिंह पिछले तीन दशकों से जेलों में बंद हैं, जो सरकारों द्वारा मानवाधिकारों का बड़ा उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि सिख नौजवानों के पीड़ित परिवारों को अभी तक पूरा न्याय नहीं मिला है और जिन परिवारों को थोड़ा बहुत न्याय मिला भी है, अब सरकार उन मामलों में सजा काट रहे आरोपी पुलिस अधिकारियों को समय से पहले रिहा करने का माहौल बना रही है। उन्होंने कहा कि पंजाब सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आरोपी पुलिस अधिकारी सीबीआई अदालत द्वारा सुनाई गई पूरी सजा काटें और अगर सरकार उन्हें समय से पहले रिहा करने की नीति पर काम करती है, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि मौजूदा सरकार भी सिखों को न्याय नहीं देना चाहती। जत्थेदार गर्गज ने कहा कि ऐसा माना जाता है कि मौजूदा पंजाब सरकार संविधान की बात तो करती है लेकिन उसका पालन नहीं करती और उसकी मंशा सिखों को कोई न्याय देने की नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार पुलिस के साथ मिलकर ऐसा माहौल बना रही है कि आरोपी पुलिस अधिकारियों को जल्द रिहा किया जाए। उन्होंने इस तरह की कार्रवाई को सीबीआई कोर्ट और संविधान का घोर अपमान बताया। उन्होंने कहा कि वर्तमान में भी पंजाब में मानवाधिकारों का ऐसा उल्लंघन आम बात है, जो गहरी चिंता का विषय है, जिस पर सभी पंजाब समर्थक संगठनों, राजनीतिक दलों, मानवाधिकार संगठनों और सामाजिक संगठनों को एकजुट होकर गंभीरता से विचार करना चाहिए।

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