पाकिस्तान में आतंकवाद विरोधी कानून में बड़ा बदलाव, सुरक्षा और नागरिक अधिकारों का संतुलन
- इंटरनेशनल
- 01 Sep,2025

इस्लामाबाद,अली इमरान चठ्ठा
राष्ट्रपति ज़र्दारीे रविवार को एंटी-टेररिज्म (संशोधन) बिल, 2025 पर हस्ताक्षर कर इसे कानून में बदल दिया। इस संशोधन के तहत 1997 के एंटी-टेररिज्म अधिनियम में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। सरकार ने इसे पाकिस्तान की आतंकवाद विरोधी व्यवस्था को मजबूत करने वाला कदम बताया है।
कानून के अनुसार कानून प्रवर्तन एजेंसियों और सशस्त्र बलों को शक के आधार पर आतंकवादी गतिविधियों में शामिल व्यक्तियों को 90 दिन तक हिरासत में रखने का अधिकार दिया गया है। इसमें अपहरण, फिरौती, उगाही और लक्षित हत्याएं जैसी अपराध शामिल हैं, जो अक्सर मिलिटेंट नेटवर्क और संगठित अपराध समूहों से जुड़ी होती हैं।संशोधन में रोक-टोक की शक्तियों के विस्तार के साथ-साथ ग़लत इस्तेमाल रोकने के लिए क़ानूनी जाँच भी शामिल की गई है। अब सशस्त्र बलों या नागरिक सुरक्षा बलों द्वारा की गई गिरफ्तारी न्यायिक निगरानी के अधीन होगी। ऐसे मामलों की जांच जॉइंट इन्वेस्टिगेशन टीम (JIT) करेगी, जिसमें वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, खुफिया एजेंसियों के प्रतिनिधि और सिविल आर्म्ड फोर्सेज़ के सदस्य शामिल होंगे।
अधिकारियों ने कहा कि यह कानून संविधान के धारा 10 के अनुरूप है, जो नागरिकों को मनमानी गिरफ्तारी से सुरक्षा प्रदान करता है।
सरकार की स्थिति
सरकार ने कहा कि यह कदम आवश्यक था ताकि विश्वसनीय खुफिया जानकारी के आधार पर आतंकवाद की घटनाओं को रोकने में मदद मिले। एक सरकारी प्रवक्ता ने कहा, “पाकिस्तान एक गंभीर चुनौती का सामना कर रहा है, जिसके लिए मजबूत कानूनी ढांचा आवश्यक है। यह संशोधन कानून प्रवर्तन को अधिकार देता है और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा भी सुनिश्चित करता है।”
सुरक्षा और अधिकारों का संतुलन
इस कानून ने पाकिस्तान में सुरक्षा और नागरिक स्वतंत्रता के संतुलन पर बहस फिर से शुरू कर दी है। मानवाधिकार विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि रोक-टोक शक्तियों पर कड़ा नियंत्रण न हो तो उनका दुरुपयोग हो सकता है। न्यायिक निगरानी और JIT जैसी बहु-एजेंसी व्यवस्था के माध्यम से सरकार ने इस चिंता का समाधान करने का प्रयास किया है।
व्यापक संदर्भ
एंटी-टेररिज्म अधिनियम को 1997 से अब तक कई बार संशोधित किया गया है। 2025 का संशोधन खैबर पख्तूनख्वा, बलूचिस्तान और शहरी क्षेत्रों में बढ़ते आतंकवादी हमलों और उगाही व लक्षित हत्याओं की घटनाओं को ध्यान में रखते हुए किया गया है। विश्लेषकों का कहना है कि नए प्रावधान शुरुआती स्तर पर खतरों को समाप्त करने में मदद कर सकते हैं, लेकिन लंबी अवधि में सफलता के लिए न्यायिक सुधार, राजनीतिक सहमति और सामाजिक-आर्थिक उपाय भी जरूरी हैं।
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